बिटिया की शिक्षा
आँखों में अभी भी दूर दूर तक नींद का नामोनिशान नही था, मनोमस्तिष्क में अभी भी सुबह वाली घटना का चलचित्र चल रहा था
करवट बदलते बदलते पता ही नही चला कब सुबह के 5 बज गए थे,
अचानक से एक मीठी आवाज मेरे कानों में पड़ी
"पीकू"
ये आवाज "दीया" की थी
(वैसे तो दीया मेरी पत्नी थी, लेकिन उससे पहले वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी.... 5 साल रिलेशनशिप में रहने के बाद हम लोगो ने शादी की थी)
"हाँ दीया"
(पास में लेटी दीया की तरफ करवट बदलते मैंने बोला)
"आज बड़ी जल्दी जग गये"
(पास आते हुए दीया बोली)
"दीया आज पूरी रात वही घटना सामने आती रही, इसी चक्कर में नींद ही नही आई"
(उसे अपनी तरफ खींचते हुए बोला)
"पीकू, ये समाज ऐसा ही है इसे सच और गलत की समझ बड़ी देर में होती, देखना आज नही तो कल ये समझेंगे जरूर"
मुझे पता था दीया मुझे सिर्फ ढंढास बंधा रही थी, जबकि कल वाली घटना से वो भी अंदर से बहुत दुःखी थी।
दरअसल कल हम लोग सुबह ऑफिस के लिए निकले ही थे की सामने होने वाले दृश्य ने एकाएक गाड़ी रोकने पर मजबूर कर दिया
मुझसे पहले दिया गाड़ी से उतरती हुई बोली
"पीकू इसे रोको"
मैंने बिना एक पल गंवाए अपनी कार को साइड में लगा कर दौड़ा ही था कि, तब तक दीया उन तक पहुँच चुकी थी
सामने एक आदमी स्कूल की ड्रेस पहने एक मासूम को बहुत बेरहमी से पीट रहा था
उस दिन दीया को देखकर मै दंग रह गया,
दीया में इतनी फुर्ती आयी कहाँ से
मेरे वहां तक पंहुचने से पहले दीया ने उस इंसान को रोक लिया था, और उस मासूम को अपने से बिलकुल चिपका सा लिया था
और वो प्यारी सी बच्ची अभी भी रोये ही जा रही थी
"अरे आप इसे पीट क्यू रहे थे"
(मैं थोड़ा गुस्से में उस तक पहुचते ही बोला)
"आप की तारीफ़"
(कुछ अकड़ते हुए तो बोला था वो, लेकिन तब तक दीया ने उस बच्ची को अपने गोदी में उठा कर चुप करा लिया था)
"तारीफ़ न ही करो तो अच्छा है महोदय, पहले आप ये बताओ आप इसे पीट क्यू रहे थे"
(मेरे बोलने से पहले आवेशित सी मुद्रा में दीया बोली)
"अब पीटता ना तो क्या करता, ये जिद कर रही है हमे स्कूल जाना है, और इसको ये नही पता की ये लड़की है, इसका स्कूल में क्या काम
"ओह"
मन के अंदर एक अजीब बेचैनी सी लग रही थी, और मेरी आँखे उस इंसान को नफरत से घूर रही थी
ठीक उसी पल ये ख्याल आया सड़क पर किसी का तमाशा बनाना ठीक नही लगता, और आस पास लोगो की भीड़ भी जमा होने लगी थी
"तुम्हारा घर कहां है? मुझे अपने घर ले चलो"
अब उस इंसान की बोली से स्पष्ट प्रतीत होने लगा था कि थोड़ा सहम गया है
"यही पीछे वाली गली में"
दीया मेरा इशारा समझ गई थी, और उसकी तरफ देखकर बोली
"चलो घर चलते है"
"पीकू आप गाड़ी लेकर आओ"
(उस गुड़िया को गोदी में उठाये दीया उस इंसान के साथ उसके घर की तरफ चल दी)
(मैंने भी उसमे घर के सामने गाडी पार्क की और बिना किसी देरी के दीया के पास आ गया)
"बेटा इधर आओ"
(वो मेरी तरफ आ गई)
"आपका नाम क्या है"
(उसको गोदी में उठाते हुए बोला)
"पूजा"
(वह बहुत धीमी आवाज में बोली)
"अले बड़ा प्यारा नाम है"
दीया तब तक उसके घर के बाहर पड़ी चारपाई पर बैठ चुकी थी
"आप मुझसे उम्र में बड़े है, आपने तो दुनिया देखी है फिर आप "पूजा" को पढ़ाना क्यू नही चाहते"
(उस इंसान से मुखातिब होकर दीया बोले जा रही थी)
"मैडम जी एक तो हम गरीब लोग ऊपर से ये लड़की, और भला इसको पढ़ लिख कर करना ही क्या है, शादी के बाद वैसे भी इसे" चूल्हा चौका ही करना"
(वह रुक रुक कर बोल रहा था, उसकी सारी बातों को मैं पूजा के साथ खेलते हुये आराम से सुन रहा था)
अरे गरीब है तो क्या हुआ, वैसे भी सरकार तो मुफ्त में शिक्षा प्रदान कर ही रही है,
साथ ही साथ ड्रेस, जूते मोज़े, बैग, खाना, और वजीफा भी दे रही है।
आप कह रहे है ये लड़की है, आज लड़कियां किस क्षेत्र में नही है ये बताइए, मैं भी लड़की हूँ जबकि इनसे ज्यादा मैं कमाती हूँ
और तो और आजकल हर जगह लड़कियों का ही बोलबाला है, हम लोगो ने साबित कर दिया अगर हमें भी अच्छी शिक्षा मिले तो हम किसी से कम नही वरन लड़को से आगे ही है।
(तब तक दिवार के सहारे खड़ी एक औरत बीच में बोल पड़ी)
"हम तो पहले से कह रहे थे जी, की मेरी बिटिया को स्कूल भेजो, लेकिन इनकी मति मारी गई है, जब देखो यही बोलते है....आखिर क्या कर लेगी स्कूल जाकर,
हमने इसी लिए घर में सिलाई का काम सुरु कर दिया जिससे मेरी बिटिया स्कूल जा सके, लेकिन हर बार यही रोकते आये है"
(उनकी बातों से लग गया ये पूजा की माता जी थी)
दीया ने उन्हें अपने पास बुलाया और समझाने लगी, मैं थोड़ा दूर हो गया था, अब उनकी स्पष्ट आवाज हमे सुनाई नही पड़ रही थी
मैंने पूजा के साथ खेलने में व्यस्त था, सायद वो अब सारी बातों को भूल गई थी.....
"पूजा"
(ये उसके पिता की आवाज थी, मुझे लग गया था कि दीया ने इनको सच का ज्ञान करा दिया है)
"बेटा इधर आओ"
(बच्चे तो प्यार के भूखे होते है, वो बिना कुछ सोचे उनकी तरफ दौड़ पड़ी)
बेटा मुझे माफ़ कर दो, आज से मैं अपनी बिटिया को रोज स्कूल छोड़कर आउंगा, तुम खूब पढ़ो लिखो, बिल्कुक मैडम जी की तरफ
(दीया की तरफ वो देख कर बोला था)
फिर मैंने उसको अपना कार्ड दिया और कहा
"तुम्हे कभी भी कोई जरूरत हो मुझसे कहना लेकिन पूजा को कभी स्कूल जाने से मत रोकना, और मैं खुद जाकर उससे स्कूल में मिल लिया करूँगा
उसने मेरी तरफ हाथ जोड़ते हुए कहा
अब मैडम जी ने मुझे सीख दे दी की
"बेटियां किसी से कम नही है"
मैं भी अपनी बिटिया को बिल्कुल मैडम जी की तरह बनाऊंगा!!
फिर हम लोग वहाँ से आ गए थे
ऑफिस के लिए तो हम दोनों वैसे भी लेट हो गए थे, फिर भी बिना किसी हड़बड़ी के हम लोग 11 बजे तक ऑफिस पहुँच गये थे
पुरे दिन सिर्फ मैं इसी फ़िराक में था कि कब मुझे दीया अकेली दिखे और मै उसे गले लगाकर बोलूं
"धन्यवाद दीया... मेरी इतनी प्यारी पत्नी होने के लिए"
साम को हम लोग ऑफिस से घर आ गए थे, दीया भी पुरे दिन यही देख रही थी की हम आज उसे कितनी प्यार भरी निगाहों से देखते आ रहे है....
जैसे ही उसने घर का दरवाजा खोला, हमने कश कर दिया को अपनी बांहों में भर लिया था....
दिया.....तुम्हे मेरी इतनी अच्छी पत्नी होने के लिए धन्यवाद...
और उस वक्त दीया बिना कुछ बोले मुझमे खो गई थी....
हम लोग एक दूसरे को जकड़े हुए बातें कर ही रहे थे, तभी दरवाजे की घंटी बजी
दीया झट से मुझे छोड़ते हुए बोली लगता है 'कामवाली बाई' आ गई...
दीया ने दरवाजा खोला तो सामने 'कामवाली बाई' ही थी....
वह घर में घुसते ही किचेन की तरफ चली गई थी
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वैसे तो हम दोनों रात के 8 बजे तक डिनर कर लेते थे, लेकिन आज डिनर करते करते 9 बज गए थे....
दिया खाने के तुरंत बाद बेडरूम में चली गई थी, उसे आज कुछ ज्यादा ही थकान महसूस हो रही थी
थोड़ी देर बाहर टहलने के बाद जब मै बेडरूम में पहुंच तो देखा दिया सो चुकी थी...
लेकिन मेरी आँखों में नींद का दूर दूर तक नामोनिशान नही था
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(दीया सुबह जल्दी उठ जाती थी, इसलिए वो आज भी जग गई थी)
"पीकू मैं उठ रही हूँ, तुम भी जल्दी से उठ जाना, कल तुमने कहा था कि आज का नाश्ता मैं तैयार करूँगा"
(बेड से उठती हुयी दीया बोली)
"दीया प्लीज"
"आज तो संडे है फिर इतनी जल्दी क्यू"
"अरे मैं योगा नही छोड़ सकती, तुम थोड़ा सो लो"
(मेरे ऊपर चादर डालते हुए वो बोली)
थोड़ी देर बाद मुझे नींद आ गई थी.........
बहुत अच्छी सोच है आपकी पंकज जी। मै भगवान से कामना करता हूं कि आप जल्दी से अध्यापक बन जाए क्योंकि हमारे देश को आप जैसे अध्यापक की बहुत आश्यकता है।
ReplyDeleteसराहनीय सोच।।
ReplyDeleteReally admired the way u wrote ����
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